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शायद प्यार यही होता है

शायद प्यार यही होता है...
1.
दो नयन अचानक मिले और चार हो गए...
जान पहिचान हुई नहीं और यार हो गए...
दोपहर शाम सी लगे और अमावस में चाँदनी दिखने लगी...
जेठ में बसंत आगया है शायद, वया भी घोंसला बुनने लगी...
पता नहीं ग्राम क्या नाम क्या, क्या हैसियत और काम है...
बस महक है,ठंडक है, आशनाई शुकुन रहमत है मुकाम है...

पर यार दूर ही ठीक हैं, मिलन के ख़्वाब तो वोते हैं...
जो मिल गए हैं, वो सोते तो साथ में हैं, पर अकेले होते हैं...
अन्तर्मन वृन्दावन होता, दिल में दर्द नहीं होता है...
बेचेनी, बेरुखी ना नफ़रत शायद प्यार यही होता है...

शायद प्यार यही होता है

2.
आँखें मिलीं चार हुईं पलकें उठी और झुक गईं...
लव थिरके, चुनरी सरकी और साँसे रुक गई...
नयन नयनों की गली में अधर अधरों से मिलन को...
थाम लूँ यौवन शिखरों को लूँ वुझा तन की अगन को...
चढ़ूँ शिखरों और उतरूँ डूब लूँ गहराइयों में...
पान कर मदिरा लवों से बहक लूँ अमराइयों में...

क्या मधुर अधरों से ज़्यादा स्वर्ग बस आगोश में अब...
त्रैलोक कमतर तन मिलन से कौन आए होश में अब...
नेह देह के राग में डूबा घर दुनियाँ रिश्ते खोता है...
काम साधना, रूह त्यागना शायद प्यार यही होता है...


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1 Comments

mrityunjay sharma

19-Mar-2021 01:03 PM

nice

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